सच्ची माँ की कहानी – माँ की ममता पर प्रेरणादायक हिंदी कहानी

बहुत समय पहले की बात है। अंबरपुर नाम के गाँव में एक बूढ़े मगर अत्यंत बुद्धिमान पंच रहते थे। लोग उन्हें दयानंद बाबा कहते थे। गाँव में कोई भी झगड़ा होता, तो उनका ही फैसला आख़िरी माना जाता था।

एक दिन गाँव में कोलाहल मच गया। गाँव की चौपाल पर दो औरतें, सविता और कुसुम, एक ही बच्चे को अपनी गोद में लेने के लिए खींचतान कर रही थीं। बच्चा इतना छोटा था कि कुछ बोल भी नहीं पाता।

उन दोनों में झगड़ा चल रहा था के उन दोनों मेंआखिर इस बच्चे की असली माँ कौन है!

लोगों ने दोनों को पकड़कर दयानंद बाबा के दरबार में लाया।

दयानंद बाबा ने अपनी धूनी राख से सनी आँखें खोलीं। उन्होंने एक-एक कर दोनों की बातें सुनीं।

सविता ने रोते हुए कहा –
“बाबा! यह बच्चा मेरी कोख से जन्मा है। कुसुम ने इसे धोखे से मुझसे छीन लिया!”

कुसुम ने आँसू पोंछते हुए कहा –
“नहीं बाबा! यह मेरा बेटा है। मैंने इसे पाला है, दूध पिलाया है। यह मुझे ही माँ कहता है।”

दयानंद बाबा ने कुछ नहीं कहा। वो सारा मसला पालक झपकते ही समझ गए।

उन्होंने थोड़ी देर दोनों को देखा, फिर उस मासूम बच्चे को देखा, फिर एक एक गहरी सांस ली और अपनी छड़ी से जमीन पर एक लंबी रेखा खींची।

उसके बाद वो दोनो महिलाओं की तरफ देखा कर बोले – “बच्चे को इस रेखा के बीच में रख दो। तुम दोनों धीरे-धीरे अपनी ओर खींचो। जो इसे अपनी तरफ खींच लेगी, वही इसकी असली माँ मानी जाएगी।”

गाँव वालो में कानाफूसी शुरू होने लगी।  गाँव वाले साँस रोके खड़े थे। हल्की धूप में बच्चे की मासूम आँखें सबको देख रही थीं।

जैसे ही दोनों ने बच्चे को पकड़ने की कोशिश की, सविता ने पूरे जोर से खींचना शुरू कर दिया। बच्चा डर के मारे रोने लगा।
कुसुम के हाथ कांपने लगे। उसने बच्चे की चीख सुनी और फफककर रो पड़ी। उसने तुरंत अपने हाथ पीछे खींच लिए।

दयानंद बाबा ने अपनी आवाज़ में गम्भीरता भरकर कहा –
“कुसुम, तुमने क्यों हाथ छोड़ दिए?”

कुसुम आँसुओं में डूबी बोली –
“बाबा, अगर इसे पाने की ज़िद में इसे दर्द हो रहा है, तो मैं हार मान लेती हूँ। मैं इसकी माँ हो या न हो, इसकी तकलीफ मैं नहीं देख सकती।”

दयानंद बाबा की आँखों में चमक आ गई। उन्होंने बच्चे को कुसुम की गोद में रखते हुए कहा –
“यही असली माँ है। जो अपनी ममता साबित करने के लिए अपने बच्चे की जान जोखिम में डाल दे, वह माँ नहीं हो सकती। सच्ची माँ वही होती है, जो बच्चे की तकलीफ से खुद टूट जाती है।”

पूरा गाँव सन्न था। कुछ लोग रो रहे थे। बच्चे ने भी अपनी दोनों नन्हीं बाहें कुसुम के गले में डाल दीं।

सविता अपनी गलती समझ गई। वो अपनी हरकत पर शर्मसार हो गयी और बिना कुछ कहे चली गई।

उस दिन से गाँव में यह कहानी सबको सुनाई जाने लगी –

जो अपने बच्चे को दर्द और तकलीफ में देखना बर्दाश्त नहीं कर सकती वही सच्ची माँ है!
ममता कभी स्वार्थ में नहीं बदल सकती। माँ वही होती है, जो अपने सुख-दुख से ऊपर उठकर बच्चे की भलाई चाहती है।

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