कौआ, गिलहरी और मटका – एक प्रेरणादायक बाल कहानी

गर्मी की वो दोपहर थी जब आसमान से जैसे आग बरस रही थी। हर पेड़ की पत्तियाँ सुस्त थीं, और हवा भी जैसे पसीने से लथपथ हो गई थी।

ऐसे में एक प्यासा कौआ आसमान में उड़ता जा रहा था… किसी तलाश में।

उसका गला सूख गया था, पंख थके हुए थे। उसने खुद से कहा –
“अब अगर पानी नहीं मिला, तो मैं खुद तंदूरी बन जाऊंगा…”

मटका दिखाई दिया – कौए की उम्मीद जगी

और तभी… उसकी नजर एक पुराने मटके पर पड़ी।

कौआ फौरन मटके के पास उतरा, झांका…

हाँ! पानी था… लेकिन बहुत नीचे।

उसे अपनी दादी की बात याद आई —

“अगर पानी नीचे हो, तो उसमें कंकड़ डालो, पानी ऊपर आ जाएगा।”

कौए की आँखों में उम्मीद चमकी।

 मटका, कौआ और कंकड़ – पुरानी तरकीब और नई मुश्किल

“चलो दादी, आज आपकी तरकीब फिर से काम में लेते हैं!”

कहते हुए कौआ पास से कंकड़ उठाकर मटके में डालने लगा।

पर पानी ऊपर आने का नाम ही नहीं ले रहा था…

कौआ थक चुका था।

“उफ्फ… ये पानी तो ऐसे ऊपर आ रहा है जैसे कोई घोंघा चढ़ रहा हो!
मेरी प्यास तो अब पेड़ की सबसे ऊँची डाली पर जा बैठी है!”

गिलहरी की समझदारी – बाल कहानी में दोस्ती की शुरुआत

तभी पास के पेड़ से एक छोटी, चालाक गिलहरी फुदकती हुई आई।

वो मटके के पास पहुँची, चारों ओर देखा, नीचे मिट्टी हटाई… और बोली —
“लो भैया! मटका तो लीक कर रहा है!”

कौआ चौक पड़ा।

गिलहरी दौड़ी… और पास से घास और मिट्टी लेकर मटके की दरार को भरने लगी।

“अब पानी कहीं नहीं जाएगा!” उसने मुस्कराकर कहा।

कौआ थोड़ी देर चुप रहा… फिर पूछा —
“तुमने कभी कंकड़ डाले हैं?”

गिलहरी ने आंखें चमकाते हुए कहा —
“नहीं डाले, लेकिन दिमाग़ लगाया है।”

कौआ और गिलहरी की मिलकर की गई मेहनत

अब दोनों ने मिलकर काम करना शुरू किया।

कंकड़ नीचे से एक दिशा में सजाए —
नीचे भारी, ऊपर हल्के।

और कुछ ही देर में…
पानी ऊपर आ गया!

कौआ झुका… और राहत से पानी पीया।

“आज समझ आया,” कौआ बोला, “सिर्फ मेहनत नहीं, तरीका भी ज़रूरी है।”

गिलहरी ने हँसते हुए जवाब दिया —
“और तरीका अकेले नहीं चलता, साथ भी चाहिए!”

इस बाल कहानी से हमे क्या सीख मिलती हैं?

– समझदारी और मेहनत का संगम हो, तो कोई भी मुश्किल आसान हो जाती है।
– पुरानी तरकीबें तब तक ही काम करती हैं जब तक हम उन्हें नई परिस्थिति में ढालना जानते हों।
– टीमवर्क हमेशा तेज़, टिकाऊ और प्यारा होता है।

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