Hindi Emotional Story – माँ की डाँट और बेटे का प्यार!

एक छोटे से गाँव में एक लड़का रहता था — आरव। सातवीं कक्षा में पढ़ने वाला यह लड़का पढ़ाई में ठीक-ठाक था, लेकिन दिल से बहुत बड़ा था। वो अपनी माँ, पिता और छोटी बहन से बहुत प्यार करता था। उसका बस एक ही सपना था — अपने परिवार को खुश देखना।

आरव हर दिन स्कूल से आकर पहले होमवर्क करता, फिर घर के छोटे-छोटे कामों में माँ का हाथ बँटाता। लेकिन उसकी माँ, मीरा, बहुत जल्दी ग़ुस्सा हो जाती थीं। कभी पानी की बोतल भरना भूल जाता, तो डाँट पड़ती। कभी स्कूल की शर्ट ठीक से प्रेस न हो, तो आवाज़ ऊँची हो जाती। आरव हर बार चुपचाप सुन लेता, कभी जवाब नहीं देता।

एक दिन की बात है …
मीरा ने आरव को 200 रुपये दिए और कहा, “बाजार से दाल, नमक और साबुन ले आ। और ज़रा ध्यान से रहना, पैसे कहीं गिरा मत देना!”

आरव पैदल ही बाजार की ओर चल पड़ा। रास्ते में उसे एक बूढ़ा आदमी दिखाई दिया, जो सड़क पार करने की कोशिश कर रहा था। आरव दौड़कर उसकी मदद करने गया। जब वह वापिस मुड़ा, तो उसकी जेब में हाथ डाला — पैसे गायब थे। शायद जब वो झुका था, तब रुपये नीचे गिर गए थे।

आरव ने आस-पास ढूँढा, दुकानों में पूछा, लेकिन कुछ नहीं मिला। वह डरा हुआ, घबराया हुआ, खाली हाथ घर लौटा। दरवाज़ा खोलते ही माँ ने पूछा, “कहाँ हैं सामान?”

आरव ने धीमे से कहा, “माँ… पैसे गिर गए… मैंने बहुत ढूँढा…”

मीरा का ग़ुस्सा फूट पड़ा, “तेरे हाथ में कुछ भी नहीं टिकता! एक ज़िम्मेदारी नहीं निभा सकता तू? नालायक कहीं का!” उसने कुछ कड़वी बातें और भी कह दीं, जो सीधे आरव के दिल में उतर गईं।

आरव की आँखें भर आईं, लेकिन उसने फिर भी कुछ नहीं कहा। बस अपने कमरे में चला गया, और धीरे से दरवाज़ा बंद कर लिया। उस रात वह चुपचाप बैठा रहा, उसने खाना भी नहीं खाया।

कुछ हफ्तों बाद सर्दी तेज़ हो गई थी। एक सुबह मीरा को तेज़ बुखार हो गया। शरीर में दर्द इतना था कि बिस्तर से उठना भी मुश्किल हो गया। पूरे घर का काम ठप पड़ गया था — खाना बनाना, कपड़े धोना, और बाकी सारे छोटे-बड़े काम।

मीरा बिस्तर पर लेटी-लेटी चिल्लाई, “आरव! पानी लाओ! दवाई कहाँ है? कुछ काम नहीं होता तुझसे!”

आरव भागकर माँ के पास आया, पानी दिया, दवाई खोजकर दी और बर्तन धोने चला गया। फिर चाय बनाई, छोटी बहन को स्कूल के लिए तैयार किया, और माँ के माथे पर ठंडी पट्टियाँ रखीं। उसने स्कूल भी छोड़ दिया उस दिन, बस माँ के पास बैठा रहा।

मीरा फिर भी झुँझलाई — “बिस्तर ठीक से नहीं लगाया तूने… रसोई में चीनी नहीं डाली चाय में…”

पर आरव कुछ नहीं बोला। उसने सिर्फ इतना कहा, “ठीक कर देता हूँ माँ,” और मुस्कराता रहा। उसके चेहरे पर कोई शिकवा नहीं था, बस एक मासूम सी चमक थी — अपनेपन की।

मीरा लेटी-लेटी उसे देखती रही — कैसे वो थकते हुए भी मुस्कुरा रहा था, कैसे उसकी हर ज़रूरत बिना कहे पूरी कर रहा था। उसकी आँखें भर आईं।

उसे एक-एक कर सारी बातें याद आने लगीं — जब उसने आरव को डाँटा था बिना वजह, जब वह रोता था चुपचाप, जब उसने कहा था, “माँ मुझसे नाराज़ रहती हैं, पर मैं उन्हें बहुत प्यार करता हूँ।”

मीरा फफक पड़ी। उसने कांपते हाथों से आरव को पास बुलाया और उसे जोर से गले लगा लिया।

“माफ़ कर दे बेटा,” वो बोली, “मैं तुझे कभी समझ ही नहीं पाई। तू तो बहुत अच्छा बेटा है… बस मैं ही हर बार तुझ पर ग़ुस्सा करती रही।”

आरव ने भी माँ को कसकर पकड़ लिया और मुस्कुराते हुए कहा, “माँ, आप मेरी माँ, हो… माँ डाँटेंगी नहीं तो कौन डांटेगा ?”

मीरा हँस पड़ी, आँसुओं के बीच वो मुस्कान पहली बार इतनी सच्ची थी — क्योंकि अब वो अपने बेटे की अच्छाई को पहचान चुकी थी।

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