अकबर बीरबल की कहानियाँ हमें चतुराई और समझ बुझ से काम लेना सिखाती हैं। आइये आज ऐसी ही एक मजेदार कहानी पढ़ते हैं –
एक सुबह अकबर के दरबार में असाधारण खामोशी थी।
सभी दरबारी अकबर के चेहरे पर गहरी चिंता की रेखाएं देखकर चुप हो गए।
अकबर ने धीरे से कहा:
“हमारी प्रिय चांदी की अंगूठी रात को महल से रहस्यमय तरीके से गायब हो गई है। पहरेदारों ने पूरी खोजबीन की, पर कोई सुराग हाथ नहीं लगा।”
उन्होंने चारों ओर नजर घुमाकर कहा:
“कक्ष में केवल तीन आदमी थे। इनमें ही कोई सच्चाई छुपा रहा है। जो इनकी बातों में से सच अलग कर देगा, वही दरबार का असली बुद्धिमान कहलाएगा।”
तुरंत तीन लोग दरबार में पेश किए गए:
1️⃣ गुलाम जाफर – जो महल की सफाई करता था।
2️⃣ रसोइया शिवा – जो रात का भोजन परोसने आया था।
3️⃣ सेवक मुनिमचंद – जो गहनों की देखभाल करता था।
अकबर ने गंभीर स्वर में कहा:
“तीनों दावा कर रहे हैं कि उन्होंने कुछ नहीं लिया। लेकिन अगर आज सच बाहर नहीं आया, तो तीनों को क़ैद में डालना पड़ेगा।”
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बीरबल ने तीनों को दरबार में बुलाया।
उनकी दृष्टि हर आदमी के चेहरे पर एक पल टिकती और अगले ही पल हट जाती।
फिर उन्होंने शांत स्वर में कहा:
“इस कक्ष में एक संदूक रखा है। उसमें मैंने रेशम का कपड़ा रखा है। जो बेगुनाह है, उसके हाथ में वह कपड़ा खुशबू छोड़ देगा। लेकिन जिसने अंगूठी चुराई है, उसके हाथ में वह कपड़ा रंग छोड़ देगा। तीनों जाकर संदूक से कपड़ा छूकर आओ।”
दरबार में जैसे एक हल्की सनसनी फैल गई।
गुलाम जाफर ने तुरंत सिर झुकाया और बिना एक शब्द बोले संदूक की ओर बढ़ गया।
उसके कदम तेज और निश्चिंत थे।
उसने संदूक खोला, कपड़ा छुआ, और लौटकर अपनी हथेलियां ऐसे फैला दीं, मानो कह रहा हो—”देख लो, मैं साफ़ हूं।”
शिवा ने संदूक की ओर बढ़ते हुए हल्की मुस्कान से बीरबल को देखा।
उसने कपड़े को दोनों हाथों से उठाकर सुंघा, फिर उसे बड़े सलीके से तह करके रख दिया।
वह लौटते हुए बोला,
“हुजूर, अगर इसमें खुशबू है तो जरूर मेरे हाथों में होगी।”
दरबार में कुछ दरबारी मुस्करा उठे।
मुनिमचंद का चेहरा सफेद हो गया।
उसके माथे पर पसीना छलक आया।
उसने संदूक की तरफ कदम बढ़ाए तो उसके पैर जैसे भारी हो गए।
उसने एक बार कपड़े की ओर हाथ बढ़ाया, फिर अचानक निगाहें इधर-उधर दौड़ाईं।
मानो कोई देख न ले।
फिर उंगलियों के पोर से कपड़े को हल्का सा छुआ और हाथ तुरंत पीछे खींच लिया।
बीरबल दूर खड़े यह सब देख रहे थे।
उनके चेहरे पर गहरी गंभीरता थी।
तीनों लौटे।
जाफर और शिवा निश्चिंत मुद्रा में हाथ आगे किए खड़े थे।
मुनिमचंद ने हाथ अपनी धोती में छुपा रखे थे।
वह बार-बार होंठ काट रहा था।
बीरबल ने कुछ क्षण तक कुछ नहीं कहा।
उन्होंने ध्यान से मुनिमचंद की उंगलियां देखीं, जो गमछे के भीतर सिकुड़कर छुपी थीं।
फिर उन्होंने धीरे-से अकबर की तरफ देखा और बोले:
“जहाँपनाह, अब सच्चाई छुप नहीं सकती।”
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अकबर ने पूछा:
“बीरबल, इसमें क्या चाल थी?”
बीरबल ने मुस्कराकर कहा:
“जहाँपनाह, संदूक में कोई रेशम का कपड़ा रखा ही नहीं था। मैंने कहा था कि चोर के हाथ पर रंग लगेगा। जो सच्चा था, उसने कपड़ा छूने में कोई डर महसूस नहीं किया। मगर जिसने चोरी की है, वह यह सोचकर ही घबराया कि कहीं हाथ पर कोई रंग न लग जाए। आप देखिए—मुनिमचंद के हाथ अब भी उसकी धोती में छुपे हैं।”
अकबर ने डपटकर कहा:
“मुनिमचंद, हाथ बाहर करो!”
मुनिमचंद की पेशानी पर पसीना था।
उसने डरते हुए हाथ आगे किए।
बीरबल बोले:
“जो बेगुनाह होता है, उसे छुपाने की जरूरत नहीं होती। इसकी यही घबराहट इसकी सच्चाई है।”
मुनिमचंद गिड़गिड़ाया:
“मुझे माफ कर दीजिए, हुजूर… मुझसे गलती हो गई।”
अकबर ने कहा:
“बीरबल, तुम्हारी बुद्धिमानी फिर जीत गई।”
दरबार तालियों से गूंज उठा।
akbar birbal ki kahani से सीख
“सच्चाई कम बोलती है और सीधे बोलती है। झूठ जितना छुपाओ, उतना उलझता जाता है। कभी-कभी बिना कोई सवाल पूछे भी सच्चाई सामने लाई जा सकती है।”