अकबर-बीरबल की कहानी : डंडी का राज़!

सोचिए, एक ऐसा दरबार जहाँ हर रोज़ नई-नई घटनाएँ होती हैं। आज मैं आपको अकबर-बीरबल की कहानी सुनाने जा रही हूँ जो बच्चों को तो हँसी और मज़ा देगी ही, लेकिन बड़े भी सुनकर सोच में पड़ जाएँगे। कहानी इतनी रहस्यमयी है कि शुरू से ही आप अंदाज़ लगाते रहेंगे—आख़िर असली चोर कौन है? चलिए, चलें उस दौर में जहाँ बीरबल की बुद्धि हर गुत्थी सुलझा देती थी और अकबर का दरबार कहानियों से जगमगाता था।

फतेहपुर सीकरी का शाही दरबार उस दिन पूरे वैभव पर था।

दीवारों पर कीमती कालीन टंगे थे, झूमरों से सुनहरी रोशनी फैल रही थी। संगमरमर की फर्श पर रत्नजड़ित गलीचे बिछे थे। शाही ढोल और नफ़ीरी की धीमी ध्वनि पूरे वातावरण में गूँज रही थी। दरबारियों की पंक्तियाँ सजी थीं — कोई कवि अपनी रचना सँभाल रहा था, कोई सेनापति युद्धकौशल की चर्चा में मग्न था, तो कोई दरबारी आपस में धीमी आवाज़ में हँसी-मज़ाक कर रहा था।

बीचों बीच सिंहासन पर बादशाह अकबर विराजमान थे। उनके पीछे मोरपंखी छत्र लहरा रहा था और दोनों ओर नज़रबट्टू (पंखे झलने वाले) राजसी ठाठ बघार रहे थे।

सभी दरबारी अकबर की ओर टकटकी लगाए थे कि अचानक…

भारी कदमों की आहट और हड़बड़ी की आवाज़ के साथ दरबार के फाटक खुले।
अंदर एक व्यापारी घबराया हुआ, अस्त-व्यस्त वस्त्रों में, पसीने से लथपथ आता दिखाई दिया।

उसकी साँसें तेज़ थीं, आँखों में भय और व्याकुलता साफ झलक रही थी।
जैसे ही वह सम्राट अकबर के सिंहासन तक पहुँचा, ज़मीन पर गिर पड़ा और काँपती आवाज़ में बोला —

“जहाँपनाह! मेरी दुकान से कीमती गहनों का संदूक चोरी हो गया। यह काम बाहर का नहीं, मेरे ही तीन भरोसेमंद सहायकों में से किसी एक का है। मैं असहाय हूँ, कृपा कर न्याय दीजिए।”

दरबार अचानक सन्नाटे में डूब गया।
हर नज़र अब अकबर और फिर उनकी दायीं ओर बैठे बीरबल पर थी।

अकबर ने गम्भीर स्वर में कहा —
“बीरबल, यह मामला अब तुम्हारे हवाले है।”

बीरबल की युक्ति

बीरबल ने तीनों सहायकों को देखा और मुस्कुराते हुए बोला –“चोरी कल रात हुई है। और चोर यहीं हमारे सामने खड़ा है। लेकिन चिंता मत करो, मैं उसे ढूँढ निकालूँगा। सच को छिपाना आसान नहीं है।”

इतना कहकर बीरबल ने अपने सेवक को इशारा किया। सेवक एक टोकरी में से लकड़ी की बराबर-बराबर डंडियाँ लेकर आया।

बीरबल ने प्रत्येक नौकर को एक-एक डंडी दी और गंभीर आवाज़ में बोला –
“यह कोई साधारण डंडियाँ नहीं हैं। यह जादुई डंडियाँ हैं। इनकी खासियत यह है कि कल तक निर्दोष की डंडी वैसी की वैसी रहेगी। लेकिन असली चोर की डंडी एक अंगुल लंबी हो जाएगी।”

यह सुनते ही दरबार में सनसनी फैल गई। नौकर एक-दूसरे की ओर देखने लगे। बीरबल ने आदेश दिया –
“तुम सब इन डंडियों को अपने पास रखो और कल सुबह दरबार में वापस लेकर आना। तब पता चल जाएगा कि चोर कौन है।”

सहायकों की बेचैनी

उस रात सबके मन में अलग-अलग भाव थे।

निर्दोष सहायकों ने आराम से डंडी रख दी और सो गए।

लेकिन असली चोर बेचैन रहा। उसे डर था कि सुबह डंडी उसकी चोरी खोल देगी। रातभर वह चैन से नहीं सो पाया।

आख़िर चोर कौन? – सन्नाटा और खुलासा

पूरा दरबार सन्नाटे में डूब गया।
अकबर ने आश्चर्य से पूछा –
“बीरबल! लेकिन सभी डंडियाँ तो हमें बराबर दिख रही हैं। फिर तुम्हें कैसे पता चला कि यही चोर है?”

बीरबल मुस्कराए और बोले –
“जहाँपनाह, इन डंडियों में कोई जादू नहीं था।
असल में मैंने एक चाल चली थी।

मैंने कहा था कि चोर की डंडी बड़ी हो जाएगी। अब सोचिए –
निर्दोष व्यक्ति को कोई डर नहीं था, इसलिए उसकी डंडी जैसी थी वैसी ही रही।
लेकिन असली चोर डर गया। उसे लगा कि डंडी सचमुच बड़ी हो जाएगी। इसलिए उसने डर के मारे अपनी डंडी काट दी।

आज उसकी डंडी बाकी सबकी तुलना में छोटी है। और यही उसके अपराध का सबसे बड़ा सबूत है।”

यह सुनते ही जिस सहायक की डंडी छोटी निकली, उसका चेहरा पीला पड़ गया। उसके होंठ काँपने लगे। पूरा दरबार उसकी ओर घूर रहा था। आखिरकार, वह ज़मीन पर गिर पड़ा और रोते हुए बोला —

सहायक: “जहाँपनाह, मुझसे गलती हो गई। लालच ने मेरी आँखें बंद कर दीं। वही संदूक मैंने चुराया था।”

दरबार में हलचल से अधिक अब सन्नाटा छा गया। सबने बीरबल की बुद्धिमानी को सलाम किया।

अकबर ने प्रसन्न होकर कहा –

“बीरबल, तुम्हारी बुद्धि का कोई जवाब नहीं! बिना तलवार उठाए, बिना मारकाट किए तुमने असली चोर को खोज निकाला।”

चोर नौकर का चेहरा पीला पड़ गया। वह कांपते हुए घुटनों के बल बैठ गया और बोला –

“जहाँपनाह, मुझे माफ कर दीजिए। डर ने मुझे ही गलती करने पर मजबूर कर दिया।”

अकबर ने उसे दंड दिलाया और व्यापारी के गहने वापस करवा दिए।

दरबार तालियों और हँसी से गूंज उठा।

यह अकबर-बीरबल की प्रेरणादायक कहानी हमें सिखाती है कि –

झूठ और अपराध चाहे कितनी ही चालाकी से क्यों न छुपाए जाएँ, एक दिन सामने आ ही जाते हैं। दोषी के मन में बैठा डर, उसे स्वयं अपने अपराध की ओर ले जाता है और सच सामने आ ही जाता है। इस कहानी से हमें यह भी सीख मिलती है कि असली न्याय तलवार या ताक़त से नहीं, बल्कि बुद्धिमत्ता, तर्क और धैर्य से मिलता है। यही कारण है कि बीरबल आज भी अपनी समझदारी और न्यायप्रियता के लिए याद किए जाते हैं।

बच्चों के लिए इस कहानी का संदेश साफ़ है—हमेशा सच बोलो और ईमानदार रहो। झूठ बोलने वाला या चोरी करने वाला कभी चैन से नहीं जी पाता, लेकिन सच्चा इंसान हमेशा आत्मविश्वास से भरा रहता है।

तो बच्चों, आपको यह अकबर-बीरबल की कहानी कैसी लगी? 🤔
क्या आपको इसका रहस्य और अंत रोमांचक लगा?
और बताइए, आप अगली बार कौन-सी अकबर-बीरबल की कहानी पढ़ना चाहेंगे?

 

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