बहुत समय पहले, भारत के एक छोटे से पहाड़ी गाँव लुकमपुर में एक गरीब लड़का नीलू अपनी दादी के साथ रहता था। उसके माँ-बाप एक हादसे में चल बसे थे और दादी ही उसका सहारा थीं। गाँव में सूखा पड़ा हुआ था, खेत बंजर हो चुके थे, और नीलू कई बार भूखा सोता।
एक शाम जब नीलू जंगल से लकड़ियाँ बीन रहा था, तभी उसे एक पहाड़ी झरने के पास एक चमकता हुआ पत्थर मिला। वो साधारण पत्थर नहीं था — उसमें हल्की नीली रोशनी थी। नीलू ने उसे उठाया और जेब में रख लिया।
रात को जब वह पत्थर को छूकर सो गया, तो उसने सपना देखा — एक बूढ़े साधु ने उससे कहा:
“यह ‘इच्छा-पत्थर‘ है। पर याद रहे, इसका इस्तेमाल केवल दूसरों की मदद के लिए करना। स्वार्थ किया तो सब खो देगा!”
पहला चमत्कार — जब पत्थर ने भूख मिटाई
सुबह की धूप धीरे-धीरे छप्पर की झिरी से कमरे में घुस रही थी। दादी बुखार में थी, नीलू चुपचाप कोने में बैठा था।
उसने पत्थर को हाथ में लिया और कहा:
“भगवान, मेरी दादी के लिए कुछ खाना भेज दो… आज वो बहुत थकी है…”
जैसे ही उसने पत्थर को हांड़ी के पास रखा, एक हल्की नीली रौशनी निकली और कमरे में एक मीठी खुशबू फैल गई।
“झन्न-झन्न-झन्न…” जैसे चूल्हे पर कड़ाही चढ़ गई हो।
मिट्टी की हांड़ी से भीगी-भीगी चावल की खुशबू और घी में तली मूँगदाल की महक आई। साथ में उबली लौकी की सब्ज़ी भी थी — ठीक वैसी जैसी दादी को पसंद थी।
दादी की आँखें भर आईं।
“इतने दिनों बाद गरम खाना… नीलू तू सचमुच भगवान का भेजा हुआ है!”
नीलू ने झुक कर दादी के पैर छुए —
“नहीं दादी, ये भगवान का दिया पत्थर है। लेकिन मैं इसका इस्तेमाल सिर्फ दूसरों के लिए करूँगा।”
सेवा का चमत्कार — हर दिन एक नई मदद
अब नीलू हर दिन सुबह उठता,
पत्थर को हाथ में लेकर आँखें बंद करता और पूछता —
“आज किसे मेरी ज़रूरत है?”
और जैसे कोई अंदर से जवाब देता…
“रामू चाचा तीन दिन से भूखे हैं…”
“कुमुद बुआ की बहू बीमार है…”
“गुड्डी को स्कूल के लिए खाना नहीं मिला…”
हर दिन पत्थर से किसी एक के लिए खाना तैयार करवाता।
कोई राजसी पकवान नहीं —
बस वही सादा, ताजा, आत्मीय खाना जो भूख के साथ दिल भी भर दे।
अम्मा और खीर वाला दिन
एक दिन गाँव की सबसे बूढ़ी अम्मा बीमार पड़ी थीं। उनके पास कोई नहीं था।
नीलू ने पहली बार उस पत्थर से खीर की इच्छा की — क्योंकि अम्मा को वो बहुत पसंद थी।
खीर बनी — गुलाबी रंग की, इलायची वाली, और बिल्कुल वैसी जैसी किसी माँ के हाथों से बनी हो।
अम्मा ने खीर का पहला चम्मच लिया और कहा:
“अब मैं चैन से मर सकती हूँ बेटा, तू भगवान है…”
नीलू की आँखों से आंसू बह निकले।
“नहीं अम्मा… मैं सिर्फ एक बच्चा हूँ, लेकिन सेवा करने का मन रखता हूँ…”
मुखिया का लालच और पत्थर की चोरी
गाँव का मुखिया भोंदूराम यह सब देखकर चौंका।
उसने नीलू से कहा: “बेटा, तू तो छोटा है… पत्थर मुझे दे दे। मैं इससे पूरा गाँव भर दूँगा अनाज से।”
नीलू ने मना कर दिया।
रात को भोंदूराम चोरी से नीलू के घर घुस आया और पत्थर चुरा लाया।
श्रापित अनुभव — जब पत्थर ने बदला रंग
भोंदूराम ने रसोई में बैठकर कहा:
“मुझे हीरों जड़ी थाली चाहिए!”
पर जैसे ही उसने पत्थर पर हाथ रखा —
रसोई में बिजली सी कड़कने लगी।
● प्याज खून में बदल गए।
● घी के डिब्बों से बदबू आने लगी।
● दूध फट गया।
● सोने की प्लेटें राख बन गईं।
और दीवारों से सैकड़ों सफेद सांप निकलने लगे।
उनके फन चमक रहे थे…
वो उसकी ओर बढ़ने लगे।
“मा…माफ करो!”
मुखिया चीखा।
लेकिन तभी रसोई से आवाज़ आई —
“तेरी नीयत ही गंदी है… सेवा नहीं, सत्ता चाहिए तुझे…”
मुखिया का हश्र और पछतावा
मुखिया भागकर छत पर पहुँचा…
पत्थर को ज़मीन पर फेंक दिया…
लेकिन पत्थर ज़ोर से उछलकर उसकी छाती पर गिरा।
वो बेहोश हो गया।
सुबह होश आया तो —
पूरा घर उजड़ चुका था। गोदाम खाली, नौकर गायब, पशु बीमार।
पुनरागमन और क्षमा-प्रार्थना
वह नीलू के पास आया – फटे कपड़े, सूजी आँखें, कांपती आवाज़:
“बेटा… माफ कर दो… मैंने बहुत बड़ा अपराध किया…”
नीलू ने पत्थर को हाथ में लिया, जो अब चमक नहीं रहा था।
शायद मुखिया द्वारा इस पथ्थर का दुरूपयोग करने के कारण उस इच्छा-पथ्थर ने अपनी जादुई शक्ति का त्याग कर दिया था!
सभी गांव वालों के लिए ये बहोत बड़ा झटका था सब लोग परेशान और चिंतित हो गए और मुखिया को भला बुरा कहने लगे।
मुखिया भी अपनी गलती समझ गया था लेकिन अब बहोत देर हो चुकी थी।
मगर नीलू ने हिम्मत नहीं हारी। उसने कहा, “… अगर आज हमारे पास जादुई पथ्थर नहीं है तो क्या हुआ? हम सब मिलकर कुछ ऐसा काम कर सकते हैं जो शायद ये जादुई पथ्थर भी न कर पाए!”
दादी बोलीं: “पुत्र, पत्थर गया तो क्या… सेवा और विश्वास तो अभी भी तुझमें है।”
नई शुरुआत — अब गाँव खुद एक पत्थर बन गया
नीलू ने गांव वालों को अपनी योजना बताई। गांव वाले बहोत खुश हुए। उन्हें नीलू की ये कल्पना बहोत पसंद आयी।
गाँववालों ने मिलकर एक साझा रसोई घर शुरू किया।
अब कोई भूखा नहीं सोता था।
नीलू सबको यही सिखाता:
“हर किसी के पास एक ‘भीतर का पत्थर’ होता है — जो सिर्फ सेवा से जागता है।”
मुखिया भी अब सेवा में लगा रहता था।
अंतिम संदेश
“जादू किसी पत्थर का नहीं होता… जादू उस दिल का होता है जो दूसरों के लिए धड़कता है।”