दिल्ली की पुरानी गलियां अपने आप में एक जीता-जागता इतिहास हैं। उन्हीं में एक गली थी – सांय-सांय गली। रात के वक्त वहां एक अजीब सी सीटी जैसी आवाज़ गूंजती रहती थी। यही नाम की वजह बनी।
यहीं पर खड़ी थी चौधरी हवेली – पुरानी, विशाल, और राज़ों से भरी। उसके ऊंचे बरामदे, नक्काशीदार खंभे और जंग लगे फाटक जैसे किसी पुराने रहस्य की पहरेदारी कर रहे थे।
हवेली के मालिक, सुरेश चौधरी, बड़े व्यापारी थे। व्यापार में तेज़ दिमाग और अनुशासन के लिए वे मशहूर थे। पर उस रात, सब कुछ बदल गया। जब हवेली के पिछवाड़े सुरेश चौधरी की लाश मिली, मोहल्ले में सनसनी फैल गई।
पुलिस की गाड़ी लाल बत्ती जलाती हुई आई। इंस्पेक्टर मलिक अपने सिपाहियों के साथ उतरे। चारों ओर भीड़ जमा हो चुकी थी।
“सब पीछे हटो,” मलिक ने कड़क आवाज़ में कहा।
लाश की हालत देखकर मलिक ने तुरंत रपट लिखवाई –
“शरीर पर संघर्ष का कोई साफ़ निशान नहीं। खिड़की अंदर से बंद। पास ही खाली जहर की शीशी। आत्महत्या का मामला।”
मगर उसी वक्त, हवेली की सीढ़ियों पर एक और गाड़ी आकर रुकी। उसमें से एक औरत उतरी – लगभग 35-36 वर्ष की, अंग्रेज़ी पोशाक में, लंबे कोट और हैट में। उसकी आंखों में गहरी चिंता थी।
सिपाही ने चौककर कहा – “आप?”
औरत ने गहरे स्वर में उत्तर दिया –
“मैं सुरेश की बहन हूं – नैना चौधरी। मैं लंदन से आज ही लौटी हूं। मेरे भाई ने मुझे कल शाम मिलने बुलाया था…फिर अचानक ये खबर…”
नैना की आंखें शव पर टिक गईं। उसके चेहरे पर पीड़ा उभर आई।
“नहीं…ये आत्महत्या नहीं हो सकती,” उसने कांपती आवाज़ में कहा। “मेरा भाई ऐसा कभी नहीं कर सकता था। वो कमजोर नहीं था…वो…”
इंस्पेक्टर मलिक ने एक लंबी सांस लेकर कहा –
“मैडम, हमें शुरुआती जांच में यही लग रहा है। कमरे के दरवाज़े खिड़कियां अंदर से बंद थीं। कोई जबरन घुसा नहीं। और ये जहर की शीशी…सबूत साफ हैं।”
नैना ने सिर हिला दिया –
“मुझे कोई और जाँच चाहिए। मैं इस मामले को यहीं बंद नहीं होने दूंगी।”
मलिक ने ठंडी आवाज़ में कहा –
“आप चाहें तो किसी निजी जासूस की सलाह ले सकती हैं, पर हमारी तरफ से मामला लगभग स्पष्ट है।”
नैना ने धीमी पर दृढ़ आवाज़ में कहा –
“मैं यही करूंगी।”
इसी बीच, भीड़ में से एक लम्बा दुबला आदमी धीरे-धीरे आगे बढ़ा। उसकी गहरी आंखें और ठहरी हुई चाल किसी साधारण इंसान की नहीं थी।
वो राघव चौधरी था – निजी जासूस।
नैना ने उसे देखा और थोड़ा सहज हो गई।
वह उसे कई सालों से जानती थी—कभी उनके पिता की पुरानी जायदाद के विवाद में भी राघव ने जांच की थी।
“राघव, मुझे सिर्फ तुम पर भरोसा है। तुम इस सचाई को उजागर कर सकते हो।”
राघव ने सिर झुकाया।
“मैं हर कोना देखूंगा। हर निशान पढ़ूंगा। सच चाहे जो हो, सामने आएगा।”
इंस्पेक्टर मलिक ने हौले से ताना मारा –
“निजी जासूसों का दिमाग कहानियां बनाने में तेज़ चलता है। “राघव, तुम्हारा अंदाज़ मैं जानता हूं—तुम हमेशा मामूली बात में भी कोई कहानी ढूंढ निकालते हो। उम्मीद है इस बार तुम्हारा अंदाज़ा सही होगा।”
राघव ने उसकी बात अनसुनी कर दी। उसने कमरे में हर चीज़ को देर तक देखा। फर्श के पास कुछ कागज़ बिखरे थे। अलमारी के पास मिट्टी का छोटा सा ढेर था, मगर इतनी कम कि कोई और शायद ध्यान ही न दे।
राघव ने मिट्टी को हाथ से छूकर देखा। उसकी बनावट अलग सी थी—जैसे बगीचे की न होकर किसी पुराने रास्ते की।
“कुछ चीजें…ठीक से जांची नहीं गई हैं,” उसने नैना को बहुत धीमे स्वर में कहा।
नैना ने भी चुपचाप सिर हिला दिया।
पास ही लाश के करीब एक पुरानी तिजोरी की चाबी गिरी पड़ी थी। मगर वह पूरी तरह खुली दिखाई नहीं दे रही थी—फर्श की दरार में आधी फंसी थी।
राघव ने दस्ताने पहनकर चाबी को धीरे से निकाला।
मलिक ने कुछ देर उसे देखा।
“क्या कुछ मिला?”
राघव ने संयमित स्वर में कहा—
“फिलहाल कुछ नहीं। जांच अभी बाकी है।”
सांय-सांय गली की हवा दीवारों से टकराकर सर्द होती चली गई।
नैना अपने आंसू पोंछती हुई एक किनारे खड़ी रही—उसकी आंखों में अब भी वही सवाल था—
“किसने मेरे भाई की जान ली?”
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रात का दूसरा पहर शुरू हो चुका था। हवेली की हर ईंट से सर्दी टपक रही थी। बड़े हाल की पुरानी घड़ी अब भी टिक-टिक कर रही थी।
राघव और नैना दबे पांव सुरेश के कमरे में पहुंचे। राघव ने अलमारी का पल्ला हिलाया। पीछे तिजोरी का जंग लगा ढक्कन दिखाई दिया।
उन्होंने चाबी को सावधानी से ताले में लगाया। ढक्कन चरमरा कर खुला। अंदर एक लाल मखमली डिबिया और कुछ कागज़ थे।
डिबिया खोलने पर सुनहरी मुहर निकली।
“मुगल काल की होगी,” राघव ने कहा। “शायद खजाने की चाबी।”
तभी दरवाज़ा खुला। इंस्पेक्टर मलिक खड़ा था—रिवॉल्वर ताने।
“राघव, तुम कानून से ऊपर नहीं हो,” इंस्पेक्टर मलिक ने कड़ाई से कहा।
राघव ने मुहर जेब में रखी।
“मुझे पता है।”
तभी खिड़की के पास कोई परछाईं लहराई। नैना चौंकी।
इंस्पेक्टर मलिक ने फौरन रिवॉल्वर मोड़ा।
“वहीं रुक जाओ!”
एक पल का सन्नाटा।
फिर वह परछाईं गायब हो गई।
इंस्पेक्टर मलिक ने गहरी सांस ली।
“देखो, मेरी जांच अब तक कहती है ये आत्महत्या है। लेकिन तुम नैना की तरफ से नियुक्त हुए हो। मैं तुम्हारे काम में रुकावट नहीं डालूंगा…बशर्ते तुम कानून की हद में रहो। अगली बार अगर कुछ छुपाया, मैं तुम्हें गिरफ्तार कर लूंगा।”
राघव ने सिर झुकाया।
“मंज़ूर।”
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सुबह होते ही हवेली में सन्नाटा और गहरा गया। नैना चौधरी हाथ में अपने भाई की तस्वीर लेकर पुराने हॉल में बैठी थीं।
राघव ने नौकरों को एक-एक बुलवाया।
इंस्पेक्टर मलिक कुछ देर वहीं रहा, लेकिन फिर बाहर निकलकर बाकी जांच में लग गया। उसकी निगरानी बनी हुई थी, पर वह मानता था यह आत्महत्या का मामला ही है।
रामदीन कमरे में घबराकर आया।
राघव ने ठंडे स्वर में पूछा—
“रामदीन, उस रात तुम कहां थे?”
“मैं…रसोई में…”
“तिजोरी की चाबी कहां थी?”
रामदीन का गला सूख गया।
“वो…मैंने छुपाई थी…लेकिन चोरी का इरादा छोड़ दिया…”
“फिर वो चाबी तिजोरी के पास कैसे गिरी?”
रामदीन ने कहा—
“किसी ने मुझे डराया था…अगर चाबी न दूं, तो सबको बता देगा कि मैं चोर हूं…”
राघव ने उसकी आंखों में गहराई से देखा।
वह कुछ और छुपा रहा था।
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दोपहर में राघव अकेले रघुवीर के पास पहुंचा।
इंस्पेक्टर मलिक उस वक्त बाहर तहकीकात की औपचारिक कार्रवाई में लगा था।
राघव ने धीरे से पूछा—
“रघुवीर, तुम मालिक से नाराज़ थे?”
“नहीं…पर वो मुझे निकालना चाहते थे…”
“क्यों?”
“उन्होंने कहा था अगर वसीयत की फाइल मैं नहीं सौंपता, तो सब खत्म हो जाएगा…”
“किसके पास वसीयत है?”
रघुवीर ने सिर झुका लिया।
“मालिक के पास…”
राघव ने खिड़की से बाहर देखते हुए सोचा—
कहीं ये सब किसी बड़े खेल की तैयारी तो नहीं?
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रात में हवेली की रसोई में हलचल सुनकर राघव पहुंचा।
बलराम अलमारी में कुछ खोज रहा था।
“बलराम!” राघव की आवाज़ गूंजी।
वह ठिठक गया।
“मैं…मालिक की रसीदें देख रहा था…”
“रसीदें रात में?”
“मुझे डर है…मुझे फंसाया जाएगा…”
“किसने डराया?”
“एक आदमी…जिसका चेहरा मैंने नहीं देखा…”
राघव ने उसकी तरफ लंबी नजर डाली।
बलराम की सांस तेज़ हो रही थी।
राघव ने मन ही मन सोचा—
रामदीन, रघुवीर और बलराम—तीनों पर शक है। लेकिन इन सबके पीछे कोई और है…जिसकी परछाईं अब भी हवेली की दीवारों पर घूम रही है।
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सुबह हवेली में अफरातफरी मच गई।
वह मखमली डिबिया, जिसमें मुहर रखी थी, गायब हो चुकी थी।
नैना हॉल में खड़ी कांप रही थी।
“कौन ले गया…?”
राघव ने ताजे पैरों के निशान देखे।
वे निशान तहखाने की सीढ़ियों से होते हुए पिछवाड़े तक जाते थे।
नैना ने धीमे स्वर में पूछा—
“रघुवीर?”
“या बलराम…या रामदीन…”
राघव ने ठंडी सांस ली।
“ये चोरी किसी ऐसे ने की है जो हमें उलझाना चाहता है। और अब वह हमें एक कदम पीछे धकेल चुका है।”
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दोपहर में बलराम को हवेली में बुलाया गया।
वह थरथराते हाथों से पुरानी चाबी राघव को लौटाते हुए बोला—
“मैंने ये चाबी तिजोरी से उठाई थी…मुझे लगा अगर मैंने नहीं दी, तो मेरी बेटी को…”
राघव ने उसकी आंखों में देखा।
“किसने धमकाया?”
“मैं नहीं जानता…”
इंस्पेक्टर मलिक पीछे खड़े यह सब सुन रहे थे। उन्होंने सिर्फ इतना कहा—
“राघव, मैं रिपोर्ट में लिख दूंगा कि बलराम ने चोरी कबूल की है। लेकिन तुम्हारा मानना है कि असली मास्टरमाइंड कोई और है।”
राघव ने सिर्फ सिर हिलाया।
“मैं यकीन से कह सकता हूं…सबकी डोर किसी अदृश्य हाथ में है…”
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रात को राघव ने तहखाने में नकली डिबिया रखी।
नैना ने पूछा—
“अगर कोई आया तो?”
“तभी तो पता चलेगा…कौन है वो…”
आधी रात तक कोई हलचल नहीं हुई।
फिर सीढ़ियों पर धीमी आहट सुनाई दी।
राघव ने बत्ती बुझाई।
एक परछाईं आगे बढ़ी, धीरे से डिबिया उठाई।
राघव ने बिजली का स्विच दबाया।
रोशनी में वह रामदीन था।
वह कांपता हुआ बोला—
“मुझे माफ कर दो…मैं मजबूर था…”
“किसने मजबूर किया?” राघव ने पूछा।
रामदीन की आंखें डबडबा गईं।
“उस आदमी ने…जिसका नाम मैंने कभी नहीं जाना…उसने बस इतना कहा था—‘अगर कुछ नहीं किया, तो सब उजागर कर दूंगा।’”
राघव ने मन में दोहराया—
कोई ऐसा जो सबके राज़ जानता है…और सबको काबू में रखता है।
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सुबह बलराम, रघुवीर और रामदीन तीनों को हवेली में एक साथ बिठाया गया।
नैना भी वहीं थीं।
राघव ने सबकी ओर देखा।
“तुम तीनों में से कोई कातिल हो सकता है,” उसने शांत स्वर में कहा।
“या तुम सब…किसी एक के हाथों में मोहरे बने रहे।”
राघव की नजर रामदीन पर गई।
“तुम्हारा डर किससे था?”
रामदीन ने आंखें बंद कर लीं।
“उस आदमी से…जिसने कहा था वो मालिक का पुराना दुश्मन है…”
राघव ने लंबी सांस ली।
“अगर कोई मालिक का दुश्मन था…वो कौन था? और कहां छुपा है?”
कहीं से कोई उत्तर नहीं आया।
राघव ने अपनी नोटबुक बंद की।
“सच अभी भी अधूरा है…लेकिन मैं इसे बाहर लाऊंगा।”
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राघव ने रात के तीसरे पहर तहखाने का दरवाज़ा खोला।
“नैना, मुझे यकीन है कोई हमें देख रहा है।”
नैना ने धीरे कहा—
“अब तक हम बस पीछे दौड़ रहे हैं…”
राघव ने ठंडी सांस ली।
“अब तक।”
फर्श पर मिट्टी की महीन लकीर खिंची थी—जैसे कोई चीज़ घसीटी गई हो।
अचानक छत से एक शीशी गिरकर फर्श पर टूटी।
उसमें कुछ धुंधला तरल था।
राघव ने देखा—
“ज़हर…”
नैना कांप गई।
“वो अब हमें भी निशाना बना रहा है…”
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मेज़ पर एक लिफाफा रखा था।
“कितना अच्छा लगेगा जब जासूस खुद शिकार बनेगा।”
राघव ने कहा—
“अब उसे सामने लाना होगा…”
नैना की आवाज़ डरी हुई थी—
“किस जाल में?”
“उसी में जिसमें वो हमें खींच रहा है।”
राघव ने मोमबत्ती की लौ ऊंची की।
सीढ़ियों पर कोई ठहरा—चेहरे पर काला नकाब।
एक गहरी, बेमेल आवाज़ गूंजी—
“तुम बहुत चालाक हो, राघव…मगर अब तुम्हारे पास वक्त खत्म हो चुका है…”
राघव ने सधी आवाज़ में कहा—
“तुमने सबको मोहरा बनाया—रामदीन, रघुवीर…और बलराम को…”
परछाईं की हंसी गूंज उठी।
“बलराम को? तुम्हें अब भी लगता है वो साधारण चौकीदार था?”
नैना की सांस रुक गई।
“तो कौन है असली मास्टरमाइंड…?”
नकाबपोश आगे बढ़ा।
“तुम सोचते हो इस हवेली की हर साजिश मैं रच रहा था। मगर सच यह है कि तुम तीनों नौकरों में से एक को बेगुनाह मानते रहे—और वही तुम्हें सबसे बड़ा धोखा दे गया।”
राघव की भौंहें सिकुड़ गईं।
“तुम किसकी बात कर रहे हो?”
नकाबपोश ने लंबी सांस ली।
“तुमने अब तक समझा ही नहीं। बलराम तो सिर्फ एक मोहरा था…जिसे असली कातिल ने इस्तेमाल किया। जिस रात सुरेश चौधरी मरे, वो आदमी यहीं मौजूद था…”
नैना ने कांपते हुए कहा—
“कौन…?”
नकाबपोश ने नकाब हटाया।
वह बलराम ही था।
पर उसकी आंखों में विकृत संतोष की चमक थी।
“तुम सोचते हो तुमने सब देख लिया, राघव। मगर मैंने वो सबूत कभी नहीं छोड़े जो तुम्हें सच तक ले जाते। तुम अब भी नहीं जानते असली खेल किसने रचा…”
राघव एक पल को चुप रहा।
सांवली मोमबत्ती की लौ बलराम के चेहरे पर साये डाल रही थी।
राघव ने धीरे-धीरे कदम आगे बढ़ाए।
“बलराम, तुम बहुत अच्छे अभिनेता हो। तुम्हें पता था मैं शक करूंगा कि कहीं कोई और भी है। तुमने ये कहानी इसलिए गढ़ी ताकि जब तुम पकड़े जाओ, तब भी मुझे यकीन न हो कि यही असली कातिल हो।”
बलराम की मुस्कान जरा भी फीकी नहीं हुई।
“सच और झूठ के बीच की रेखा बहुत पतली होती है…”
राघव ने ठंडी आवाज़ में कहा—
“सही कहा। लेकिन मैं जानता हूं, तुम्हीं ने ये पूरा खेल रचा। रामदीन को उसकी गरीबी का डर दिखाया। रघुवीर को पुरानी नौकरी खत्म होने का। और खुद को मासूम चौकीदार दिखाने का। अगर तुम असली मास्टरमाइंड न होते, तो तिजोरी की चाबी, जहर की शीशी और वह धमकी भरा लिफाफा तीन अलग हाथों से नहीं घूमते। ये सब एक ही दिमाग की साज़िश थी।”
बलराम की आंखें एक पल के लिए झपकीं।
राघव ने कदम और आगे बढ़ाया।
“तुम्हारी सबसे बड़ी गलती यह थी कि तुमने सबको इतना उलझा दिया कि कोई तुम्हारे अलावा साज़िश को अंजाम ही नहीं दे सकता था। और मैंने वो आखिरी कड़ी भी देख ली—तहखाने की उस मिट्टी पर तुम्हारे जूतों के निशान।”
बलराम की मुस्कान अब बुझने लगी थी।
नैना ने धीरे से कहा—
“यही सच था…?”
राघव ने जेब से रिकॉर्डर निकाला।
“हर शब्द रिकॉर्ड हो चुका है। अब कोई कहानी काम नहीं आएगी।”
इंस्पेक्टर मलिक पीछे से आए।
“बलराम सिंह…तुम गिरफ्तार हो…”
बलराम का चेहरा पत्थर हो गया।
उसने आखिरी बार सांय-सांय गली की तरफ देखा।
“तुम सचमुच बहुत चालाक हो, राघव…”
राघव ने मोमबत्ती बुझाते हुए कहा—
“रहस्य चाहे कितना भी गहरा हो…किसी न किसी की नजर उसे देख ही लेती है।”