कितनी बार आपने सुनी होगी शेर और चूहे की कहानी?
हर किताब, हर स्कूल, हर दादी की गोद में वही पुरानी बात –
शेर जंगल का राजा होता है, घमंडी होता है,
फिर जाल में फँस जाता है और चूहा उसकी रस्सी काटकर जान बचाता है।
मगर आज मैं वही पुरानी Moral Story in Hindi नहीं सुनाऊँगी।
आज मैं आपको शेर और चूहे की एक नई कहानी दिखाउंगी –
ऐसी कहानी जो न आपको पहले किसी किताब में मिली होगी,
न Google पर!
यहाँ चूहा सिर्फ जाल नहीं काटता –
बल्कि अपनी करुणा और बुद्धिमत्ता से
सदियों पुराने गुफा के रहस्य को सुलझाता है।
और आपको बताता है –
सच्ची बहादुरी हमेशा आकार में नहीं, दिल में होती है।
जंगल में एक घमंडी ऐलान
बहुत समय पहले की बात है।
जंगल के बीचों-बीच, एक ऊँची चट्टान पर शेर सिंहकेतू लेटा था।
उसकी गहरी सुनहरी आँखें पूरे जंगल को निहार रही थीं।
पत्तों की सरसराहट में भी उसका नाम गूंजता था –
“सिंहकेतू… जंगल का राजा!”
सिंहकेतू को अपनी ताकत पर बहुत घमंड था।
हर सुबह वह गरजकर कहता –
शेर (गर्जना करते हुए):
“कोई है यहाँ जो मुझसे बड़ा हो?
मेरी मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता!”
आसपास खड़े तेंदुए, सियार, हाथी सब डर से सिर झुका लेते।
पर एक प्राणी था जो उसकी दहाड़ पर मुस्कुरा देता –
नन्हा चूहा मंथरु।
मंथरु की मुस्कान और शेर का गुस्सा
मंथरु का घर एक पुरानी कंटीली झाड़ी के नीचे था।
वह अक्सर शेर की बातें सुनकर अपनी मूंछें सिकोड़ लेता।
उसका दिल कहता –
“इतना घमंड किसी दिन बड़ी मुसीबत बन जाएगा।”
एक दिन शेर की नजर उस पर पड़ गई।
वह दहाड़ा –
शेर:
“तू क्यों हँस रहा है, मटर के दाने? कहीं भाग मत जाना – आज तेरी बारी है अपनी उपयोगिता बताने की!”
मंथरु हिचकते हुए बोला –
मंथरु:
“म…महाराज… मैं भी आपकी मदद कर सकता हूँ… कभी… अगर आप मुसीबत में हों…”
सारा जंगल हँसी से गूंज उठा।
तेंदुए ने कहा –
“हा हा हा! देखो, ये नन्हा बोरा कह रहा है कि शेर को बचाएगा!”
शेर ने मूंछ फड़काते हुए कहा –
“ठीक है, छोटू – तेरी ये बात मैं याद रखूँगा।
अगर कभी जरूरत पड़ी, तो देखूँगा तेरी औकात!”
रहस्यमयी गुफा की खबर
कुछ दिन बाद जंगल में खबर फैली –
“पुरानी गुफा फिर खुल गई है!”
वह गुफा सदियों से बंद थी।
कहा जाता था –
जिसने उसमें घमंड से पैर रखा,
वह पत्थर में कैद हो जाता।
शेर सिंहकेतू को यह सब बकवास लगा।
उसने कहा –
“किसी गुफा की हिम्मत नहीं कि मुझे छू ले!
आज मैं जाकर उस गुफा का राज़ खोलूँगा!”
मंथरु ने डर से पूछा –
“महाराज… अगर सच में श्राप हुआ तो?”
“डरपोक! तू अपनी बिल में छुपा रह!”
गुफा का श्राप और शेर की घबराहट
शेर जैसे ही गुफा में पहुँचा, जमीन पर एक अजीब-सी नील चमक फैल गई।
उसका पंजा पत्थर में फँस गया।
उसने उसे खींचा, मगर जितना खींचता, उतनी ठंडी सख्ती उसे पकड़ लेती।
शेर की आवाज़ कांपने लगी।
शेर (घबराया हुआ):
“यह… यह क्या हो रहा है…? कौन-सी जगह है ये… कोई… कोई है बाहर?”
उसने ज़ोर से दहाड़ लगाई—
“बचाओ! सुन रहा है कोई? मुझे निकालो यहाँ से!”
जंगल के जानवर गुफा के बाहर इकट्ठा हो गए।
कुछ दूर से देखते रहे।
हाथी ने धीरे से कहा—
“ये गुफा… ये वही पुरानी गुफा है ना? जहाँ कोई गया, वापस नहीं आया?”
सियार फुसफुसाया—
“हाँ… और सच कहूं, शेर ने हम सबका जीवन नर्क बना दिया था। अब वही फँस गया… तो हमें क्यों परवाह हो?”
तेंदुआ बोला—
“कहीं उसकी मुसीबत हमें न लपेट ले… मैं तो दूर ही ठीक हूँ।”
कुछ जानवर डर से हट गए।
कुछ ने मुँह फेर लिया।
मंथरु भी वहीं था।
उसके दिल में डर और दया दोनों थे।
वह सोच रहा था—
“क्या करूँ? मैं इतना छोटा… और ये गुफा… किसी को भी नहीं पता इसका रहस्य…”
उसके छोटे-से दोस्त गिलहरी ने धीरे से उसका पंजा पकड़ा।
“मंथरु… कोई और तो मदद नहीं करेगा… पर मुझे याद है, माँ कहती थीं—लोमड़ी मौसी को इस गुफा के बारे में कुछ पता है।
अगर कोई इस रहस्य को जानता है, तो वही हैं।
मैं… मैं उसे बुला लाता हूँ!”
मंथरु की आँखें थोड़ा नम हुईं।
उसने गिलहरी का हाथ दबाया।
“जल्दी जा… मैं यहाँ तब तक रुकता हूँ…”
शेर का अकेला डर
गुफा के अंदर शेर की साँसें तेज़ हो रही थीं।
वह अपनी गरदन घुमा-घुमा कर बाहर झाँकने की कोशिश कर रहा था।
वहाँ सिर्फ मंथरु दिख रहा था।
उसने ग़ुस्से से पूछा – “कोई… और कोई नहीं आया?… बस तू ही…?”
मंथरु ने डर और साहस की मिली-जुली आवाज में कहा—
“बाकी सब… सब डर गए… कुछ… शायद… आपको पसंद नहीं करते…”
शेर की आँखों में एक पल को आहत गर्व उभरा।
उसने धीरे से कहा –
“हाँ… मैंने कभी किसी को दोस्त माना ही कहाँ था… अब कोई मुझे अपना क्यों मानेगा…”
उसकी आँखें बुझने लगीं।
मंथरु ने अपनी काँपती पूंछ को जमीन पर टिकाया और कहा—
“मैं… मैं कोशिश करूँगा… कुछ करूंगा… गिलहरी ने कहा है—लोमड़ी मौसी को पता होगा… उसे बुलाया है…”
गुफा के बाहर की खामोशी
जंगल अब भी सन्न था।
कुछ जानवर झाड़ियों के पीछे छुपकर देख रहे थे।
कुछ ने तो अपनी गर्दन तक मोड़ ली थी, कि कहीं उनकी आँख शेर से न मिल जाए।
मंथरु के दिल में एक कसक उठी—
“कितनी अजीब बात है… जिनसे ताकत की उम्मीद थी, वे गायब हैं… और मैं… सबसे छोटा… यहाँ खड़ा हूँ…”
कुछ देर बाद गिलहरी दौड़ती हुई लौटी।
उसके पीछे एक बूढ़ी लोमड़ी धीमी चाल से चल रही थी।
उसकी आँखों में कई जन्मों का अनुभव था।
लोमड़ी (गहरी आवाज में):
“तो… वह घमंड का कैदी आज सचमुच फँस गया है…”
मंथरु ने विनती की—
“मौसी… क्या आप बता सकती हैं… कोई उपाय?”
लोमड़ी ने धीरे से कहा—
“यह गुफा… साधारण जगह नहीं… यह करुणा की परीक्षा लेती है… इसे शक्ति से कोई न तोड़ सका… न तोड़ सकेगा…”
लोमड़ी की रहस्यमयी चेतावनी
लोमड़ी धीरे-धीरे गुफा के मुहाने पर आई।
उसकी चाल में कोई डर नहीं था—सिर्फ अनुभव का ठहराव।
शेर ने उसकी तरफ देखा—उसकी आँखों में पहली बार एक सवाल था, घमंड नहीं।
शेर (साँस उखड़ती हुई):
“तुम… तुम जानती हो… यह कौन सी जगह है…?”
लोमड़ी ने उसकी दहाड़ के जवाब में कोई डर नहीं दिखाया।
उसने अपनी लम्बी पूंछ को धीरे से झटका और कहा—
“यह वह गुफा है, जहाँ तुम्हारे जैसे कई घमंडियों ने क़दम रखा और पत्थर में बदल गए।
ये पत्थर किसी ताकतवर पंजे से नहीं टूटे, न तोड़ सकेंगे।
ये पत्थर सिर्फ उसकी दया और करुणा को पहचानते हैं, जिसने एक बार भी किसी को निस्वार्थ बचाया हो।”
फिर लोमड़ी में पलट कर मंथरु से पूछा – “क्या तुमने अपने जीवन में कोई दया और करुणा से भरा काम किया हैं? कभी किसी का जीवन बचाया है या किसी की निस्वार्थ भाव से मदद की हैं?”
मंथरु ने अपनी छोटी-सी आँखें उठाईं—
वह अब भी घबराया था।
लोमड़ी की आवाज और धीमी हो गई—
“सोच… क्या तुझे याद है, कोई ऐसा दिन, जब तूने बिना किसी स्वार्थ के किसी का जीवन बचाया हो…?”
मंथरु की पलकें थरथरा गईं।
उसने बहोत याद करने की कोशिश की और अचानक उसे याद आया बरसात की उस रात का वो किस्सा जब उसने बचाई थी एक नन्ही चिड़िया की जान!
उसके अंदर कहीं कुछ जागा।
फिर उसे वो सब याद आया –
“रात की ठंडी हवा…
गीली मिट्टी की महक…
और एक काँपती चिड़िया की चुप सिसकी…
उसने अपनी आँखें बंद कीं—
बरसात की रात थी।
बिजली की लहरें आसमान को चीर रही थीं।
मंथरु अपनी बिल में बैठा था—गर्म, सुरक्षित।
फिर बाहर से एक आवाज आई—
“चूँ… चूँ…”
वह झाँका।
एक नन्ही चिड़िया कीचड़ में गिरी थी।
उसकी आँखें बंद हो रही थीं।
मंथरु ने सोचा –
“अगर इसे यहाँ छोड़ दूँ, यह नहीं बचेगी…”
उसने कोई देर नहीं की।
छोटी-सी पीठ पर उसे उठाया।
उसका पंख भीगकर उसके चेहरे से चिपक गया।
सारी रात वह उसे गर्म घास में लपेटे रहा।
उसके नन्हे हाथ सर्दी से काँपते रहे।
सुबह हुई।
चिड़िया ने आँखें खोलीं।
उसकी चोंच से एक हल्की मुस्कान फूटी।
चिड़िया बोली –
“भैय्या तुमने… मुझे बचा लिया…”
वह धीरे से उड़ गई।
जैसे आकाश ने मंथरु को कोई अदृश्य वरदान दिया हो।”
मंथरु की आँखों में चमक
मंथरु ने गहरी साँस ली।
उसका दिल तेज़-तेज़ धड़क रहा था।
“मुझे याद है… मैंने किया था… एक बार… बिना कुछ चाहे…”
लोमड़ी ने उसकी तरफ देखा।
उसकी बूढ़ी आँखों में हल्की मुस्कान आई।
“तो अब वही करुणा तुझे हक देती है—इस पत्थर को पिघलाने का!”
गुफा में नन्हे कदम
शेर की साँसें अब भी तेज़ थीं।
उसकी आवाज में थकावट थी—
शेर ने कहा –
“मंथरु… कुछ कर… अगर कर सकता है…”
मंथरु काँपता हुआ आगे बढ़ा।
उसने पत्थर पर हाथ रखा।
पत्थर ठंडा था, जैसे उसमें किसी का घमंड जड़ हो।
उसने अपनी नन्ही उंगलियों से तीन रेखाएँ खींचीं—
एक करुणा की, एक साहस की, एक दोस्ती की।
सन्नाटा छा गया।
पत्थर का पिघलना और जंगल की गवाही
धीरे-धीरे पत्थर की सतह पर हल्की भाप उठी।
एक दरार उभरी।
शेर ने महसूस किया—उसके पंजे पर जकड़न ढीली हो रही है।
उसकी आँखों में अब पहली बार राहत थी—और थोड़ी हैरानी भी।
शेर खुद से बड़बड़ाते हुए बोला – “इतना छोटा… और इतना बड़ा साहस…”
मंथरु ने हँसने की कोशिश की, पर उसकी आवाज काँप गई।
मंथरु (धीरे से):
“महाराज… कभी-कभी… छोटा होना… बड़ा काम आता है…”
शेर आजाद हो गया।
उसके चेहरे पर अब घमंड के भाव नहीं थे।
शेर ने पहली बार न हँसते हुए न गुस्सा करते हुए देखा और सिर्फ सिर झुकाया।
वो मंथरु को देख कर मुस्कुराया और उसका धन्यवाद करने लगा और बोला –
“मैंने सारी उम्र यह जानने में बर्बाद कर दी… कौन छोटा है, कौन बड़ा…
आज पता चला—सच्चाई इससे कहीं आगे होती है।”
जंगल की सभा और उत्सव – शेर का पश्चाताप
जंगल के बीचों-बीच बड़ी सभा लगी थी।
सारे जानवर – हाथी, तेंदुआ, सियार, गिलहरी, नेवला – सब धीरे-धीरे जमा हुए।
गुफा की घटना सबकी आँखों में ताजा थी।
शेर सिंहकेतू अपने भारी कदमों से मंच पर चढ़ा।
मंथरु उसकी बगल में खड़ा था – छोटा, मगर आज सबसे बड़ा।
शेर ने सब जानवरों की ओर देखा।
पहली बार उसकी आवाज में गरज नहीं, पछतावे की सच्चाई थी।
शेर (गंभीर स्वर में):
“आज मैं अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती मानता हूँ।
मैंने सारी उम्र सोचा कि मैं राजा हूँ…
और सिर्फ राजा होने का घमंड किया।
पर… मैंने यह कभी न समझा कि राज करना सिर्फ दहाड़ से नहीं, विश्वास से होता है।
मुझे एहसास है… मैंने कभी किसी के दुख-दर्द को अपना नहीं माना।
कभी किसी की परेशानी में साथ खड़ा नहीं हुआ।
आज जब मैं खुद फँसा…
तो कोई आगे नहीं आया।
क्योंकि मैंने भी आप सबका भरोसा खोया था।”
सभा में गहरा सन्नाटा छा गया।
शेर की आवाज अब धीमी और बोझिल थी।
शेर (आँखें झुकाकर):
“मुझे अपने घमंड पर शर्म है।
मुझे ये भी मानना होगा कि सिर्फ ताकत से कोई बड़ा नहीं होता।
मंथरु ने…
इस छोटे-से प्राणी ने…
मुझे आज वो सिखा दिया, जो मैं अपनी पूरी उम्र में न सीख सका।”
शेर ने एक लंबी साँस ली।
फिर उसने अपनी भारी गर्दन मंथरु की ओर झुकाई।
शेर:
“मंथरु, आज से तुम सिर्फ मेरे मित्र नहीं…
इस पूरे जंगल के रक्षक हो।
जिसने मेरी जान, मेरा घमंड, और मेरी आँखें – तीनों बचाईं।”
मंथरु के नन्हें गाल भीग गए।
तालियों और जयजयकार की गड़गड़ाहट जंगल में गूंजने लगी।
कहानी से क्या सीख मिलती है? – Moral of the Story
✅ घमंड कभी काम नहीं आता
ताकत पर घमंड करने वाला शेर आखिर अकेला पड़ गया।
✅ सच्ची बहादुरी आकार से नहीं होती
मंथरु छोटा था, मगर उसकी करुणा और साहस ने सबको चौंका दिया।
✅ मदद हमेशा लौटती है
जो काम मंथरु ने नन्ही चिड़िया की मदद करके किया था, वही उसकी ताकत बना।
✅ सबका सम्मान करें
हर जीव की अहमियत होती है। किसी को छोटा मत समझो।
✅ सच्चा नेतृत्व भरोसे से होता है
राजा वही होता है, जो सबके सुख-दुख में साथ खड़ा हो।